बरसाना और नंदगांव के बीच स्थित एक संकरी घाटी को "दान घाटी" कहा जाता है। इस घाटी से होकर जब भी गोपियां माखन, दूध, दही लेकर जाती थीं, तो नटखट श्रीकृष्ण अपने सखाओं के साथ वहां प्रकट होते और उनसे "कर" यानी कर (टैक्स) वसूलने का खेल खेलते।
पौराणिक मान्यता के अनुसार, जब श्रीकृष्ण और उनके सखा इस घाटी में बैठते, तो वे रास्ते से गुजरने वाली गोपियों को रोककर उनसे कर (टोल टैक्स) मांगते। श्रीकृष्ण मस्ती भरे अंदाज में कहते,
"अरे गोपियों! यह नंदगांव और बरसाना के बीच की सड़क मेरी है। जो भी यहां से गुजरेगा, उसे कर देना पड़ेगा।"
गोपियां भी हंसी-मजाक के साथ उत्तर देतीं,
"क्यों दें हम कर? यह तो सभी के लिए खुला मार्ग है।"
तब श्रीकृष्ण शरारती अंदाज में कहते,
"यह मार्ग हमारी रानी राधा जी के राज्य में आता है, और इस रास्ते से गुजरने के लिए कर चुकाना अनिवार्य है!"
इसके बाद गोपियां कृष्ण से छेड़छाड़ में उलझ जातीं और कभी-कभी वे उन्हें दूध, दही और माखन के बदले टोल चुकाने के लिए मजबूर कर देते।
यह संकरी खोर न केवल श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का केंद्र थी, बल्कि यह प्रेम और भक्ति का भी प्रतीक मानी जाती है। इसे राधा-कृष्ण के प्रेम की मधुर अभिव्यक्ति का स्थल भी माना जाता है।
आज भी बरसाना और नंदगांव में इस स्थान को श्रद्धालु बड़ी श्रद्धा से देखते हैं। यहाँ विशेष रूप से लठमार होली का आयोजन होता है, जहाँ नंदगांव के ग्वाल और बरसाना की गोपियां मिलकर इस लीला का पुनः मंचन करते हैं।
दान घाटी मथुरा-वृंदावन क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है, जहाँ हर साल हजारों श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। यहाँ की रहस्यमयी संकरी घाटियाँ और ऐतिहासिक धरोहरें कृष्ण भक्ति से ओत-प्रोत हैं।
दान घाटी की कथा श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं में से एक महत्वपूर्ण प्रसंग है, जो प्रेम, भक्ति, और शरारत से भरी हुई है। यह स्थान आज भी कृष्ण प्रेमियों के लिए आध्यात्मिक ऊर्जा का स्रोत बना हुआ है।
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